बाकी बचे केवल 4 विधायक,अब यूपी अपना दल से भी छोटी हो गई BSP
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले ही सम्मीकरण बदलते नजर आ रहे है। 10 साल पहले जिस पार्टी की यूपी में पूर्ण बहुमत की सरकार रही हो, उसकी हालात इतनी खस्ता हो जाए, यह किसी ने सोचा भी नहीं होगा। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के अधिकांश विधायक पार्टी का साथ छोड़ गए हैं। पिछले 6 माह में बसपा के 15 विधायक 1-1 कर पार्टी छोड़ गए हैं। अब पार्टी में केवल 4 विधायक ही रह गए हैं। कभी यूपी पर शासन करने वाली बहुजन समाज पार्टी आज दल अपना दल से भी छोटी सियासी पार्टी बन गई है। प्रदेशस्तर पर पहचान रखने वाले उसके ज्यादातर नेता पार्टी छोड़ चुके हैं।
विधायकों के एक बड़े दल ने अपना पाला बदल लिया है। चुनाव करीब आ गए हैं। ऐसे में बसपा की यह स्थिति सभी राजनीतिक दलों को एक बार फिर अपनी रणनीतियों की समीक्षा के प्रति प्रेरित करती हैं। अब सवाल यह है कि बसपा टूटने से किस पार्टी को सबसे ज्यादा फायदा होगा। सपा या भाजपा? हाल के दिनों में बसपा का कोर वोटबैंक दरक चुका है।
पिछले 3 चुनाव के आंकड़े इसकी गवाही देते हैं। वर्ष 2007 में जब यूपी में बसपा की सरकार बनी थी तब पार्टी को 30.43 फीसदी वोट मिले थे। 2012 में न सिर्फ पार्टी हारी बल्कि उसका वोट शेयर भी घटकर 25.95 फीसदी रह गया। 2017 में तो हालत और पतली हो गई। बसपा को महज 22.23 फीसदी ही वोट मिल सके थे। यदि सपा की बात करें तो 2007 से लेकर 2017 तक उसके वोट शेयर में महज 2 फीसदी की ही गिरावट देखी गई।
बसपा में यह गिरावट इन्हीं सालों में 8 फीसदी रही। जाहिर है कि बसपा की जमीन लगातार दरकती जा रही है। एक एक करके उसके सभी बड़े नेता पार्टी छोड़ते गए। बता दें कि यूपी में 22 फीसदी के करीब दलित और 18 फीसदी मुसलमान हैं। दलितों में से 10 फीसदी जाटव वोट है, जो बसपा का वोटबैंक माना जाता है। सीटों के हिसाब से उसे मुस्लिम वोट भी मिलते रहे हैं। इस बार हालात जुदा हैं।
इस बार 2022 के चुनाव में बसपा के वोट शेयर में और गिरावट आ जाएगी। दलित वोटबैंक में तो पहले ही सेंध लग चुकी है। अब जाटव वोटबैंक में भी सेंध की आशंका गहरा गई है। भाजपा और सपा जैसी पार्टियां बसपा से टूट चुके या टूट रहे वोटबैंक को समेटने को लेकर लालायित हैं, तो फिर इन वोटों का बटवारा किन पार्टियों के बीच और कैसे होगा।
मायावती के दलित वोटबैंक में तो पहले ही भाजपा ने सेंध लगा ली है, लेकिन, जाटव वोटबैंक में सेंधमारी कितनी हो पाती है, चुनाव बाद पता चलेगा। यह बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि चुनाव में कौन सा गठबंधन साथ उतर रहा है। संभव है कि अभी दिख रहा गठबंधन चुनाव तक कायम न रहे। ऐसा होने पर आगे चलते हुए दिख रही पार्टी पीछे दिखाई देने लगेगी। किसी दल के साथ बसपा के गठबंधन की संभावनाएं फिलहाल दिखाई नहीं दे रही हैं।